Authors : डाॅ. रविंन्द्रनाथ माधव पाटील
Page Nos : 296-299
Description :
भारत देश की जनता को अनेक वर्षोे की गुलामी की समयावधि में हर तरह की परेशानियों और मुसिबतों से गुजरना पडा। उस समय प्रचलित सभी प्रकार की अमानवीय अव्यवस्था ही इसके लिए कारणीभूत थी। सदियों से जिनपर अनेक प्रकार के अमानविय अन्याय, अत्याचार प्रस्थापित अव्यवस्था व्दारा होते रहे। जहाॅ पुलिस व कानून भी मानव के जीवनावश्यक अधिकार को नकारती थी। बल्कि इन अधिकारों को संरक्षित, सुनिष्चित करना संबंधित व्यवस्था का दायित्व था। जनता के इस संघर्ष को मानवाधिकार, मुलभूत अधिकार, जीवनावश्यक अधिकार कहा जाता है। जिसे आज मानवाधिकार सुनिश्चित, सुरक्षित करता है। उसीको प्राचीन समय का उपलब्ध साहित्य जिसे संत, सुधारक, विदृवान साहित्यिक समाज, मानव की वास्तविक परिस्थितियों को उजागर करके, मौलिक आदर्श स्थापित करके, मानव की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रयासरत था। साहित्य मानव में चेतना, जागृती, नयी कलयाणकारी दृष्टि प्रदान करता है। साहित्य के पठन-पाठन, चिंन्तन, क्रियान्वयन से मानव स्वार्थ के सीमित घेरे से मुक्त होकर समाज के सर्वागिण हित के लिए अग्रसर रहता है। यह कार्य हिन्दी साहित्य में स्वतंत्रता पूर्व से आजतक निरंतर किया जा रहा है। इस प्रकार मानवाधिकार और साहित्य मानव, पर्यावरण तथा सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।